मिशन बिहार के 'संकटमोचक' बने धर्मेंद्र प्रधान, चिराग को मनाने और NDA में सीट बंटवारे के पीछे की कहानी

मिशन बिहार के 'संकटमोचक' बने धर्मेंद्र प्रधान, चिराग को मनाने और NDA में सीट बंटवारे के पीछे की कहानी

Oct 12, 2025 - 22:31
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मिशन बिहार के 'संकटमोचक' बने धर्मेंद्र प्रधान, चिराग को मनाने और NDA में सीट बंटवारे के पीछे की कहानी
चिराग की पार्टी 40 से ज्यादा सीटों पर अड़ी थी, लेकिन धर्मेंद्र प्रधान ने तोड़ निकाल लिया

बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर NDA में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो गया है। इसमें बीजेपी 101, जेडीयू 101, चिराग की पार्टी 29, मांझी की पार्टी 6 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सीट बंटवारे में धर्मेंद्र प्रधान की भूमिका बेहद अहम रही है। दिल्ली में देर रात चली बैठकों में धर्मेंद्र प्रधान ने चिराग पासवान और अन्य सहयोगियों के बीच सहमति बनवाई। 

चुनाव आयोग ने जैसे ही बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, पटना में राजनीतिक हलचल तेज हो गई थी। सबसे पहला मुद्दा उठा- NDA में सीटों के बंटवारा का। इस पूरी कवायद के केंद्र में थे बीजेपी के बिहार प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) प्रमुख नेता चिराग पासवान। 

 चुनाव अधिसूचना की स्याही सूखी भी नहीं थी कि  चिराग पासवान के खेमे ने बीजेपी पर ज़्यादा सीटों के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। एलजेपी (R) के एक वरिष्ठ नेता ने मज़ाकिया लहजे में कहा था कि हमारा लकी नंबर 9 है, इसलिए हम उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे जिनका अंक 9 है। ये बयान आत्मविश्वास और सोच-समझकर लिए गए फैसलों की ओर इशारा करता है। 

बिहार में 2010 में एनडीए की भारी जीत (243 में से 206 सीटें) की पटकथा लिखने से लेकर 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन (40 में से 31 सीटें) तक, बिहार के चुनावी मानचित्र पर प्रधान की छाप स्पष्ट देखी जा सकती है।

धर्मेंद्र प्रधान की सफलता का रिकॉर्ड कई राज्यों में फैला हुआ है।

- उत्तर प्रदेश (2022):  भाजपा की लगातार दूसरी बार जीत सुनिश्चित की।
- हरियाणा (2024):  एंटी-इंकंबेंसी के बावजूद तीसरी बार बीजेपी की सरकार बनवाई। 
- उत्तराखंड (2017): पार्टी को सत्ता में वापस लाने में अहम भूमिका।
- पश्चिम बंगाल (2021): नंदीग्राम पर खास फोकस, जहां ममता बनर्जी को हार का सामना करना पड़ा।
- ओडिशा: जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत कर भविष्य की जीत की नींव रखी।

भाजपा के सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार

धर्मेंद्र प्रधान की असली ताकत उनके संगठन-निर्माण कौशल, सहज लेकिन प्रभावी बातचीत शैली और बिना किसी शोर-शराबे के गतिरोध सुलझाने की क्षमता में छिपी है। यही गुण उन्हें जटिल गठबंधनों और सूक्ष्म राजनीतिक समीकरणों के बीच भाजपा का सबसे भरोसेमंद रणनीतिकार बनाते हैं। जैसे-जैसे बिहार अब चुनावों की ओर बढ़ रहा है, 'डबल इंजन सरकार' को एकजुट रखने और एनडीए को एक दिशा में आगे ले जाने की ज़िम्मेदारी में धर्मेंद्र प्रधान की रणनीतिक चतुराई और भरोसेमंद छवि निर्णायक साबित हो सकती है। भाजपा के लिए वे न सिर्फ़ संगठन की रीढ़ हैं, बल्कि वह उसकी 'विजयी रणनीति' का विश्वसनीय चेहरा भी बने हुए हैं। 

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